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आरएसएस की शताब्दी पर पीएम मोदी ने स्वयंसेवकों को सराहा, कहा- ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना से किया राष्ट्रनिर्माण

पीएम मोदी ने संघ की भूमिका समझाते हुए कहा कि जैसे नदियां हर क्षेत्र को समृद्ध करती हैं, वैसे ही संघ ने शिक्षा, कृषि, सामाजिक कल्याण, महिला सशक्तिकरण और जनजातीय कल्याण जैसे अनेक क्षेत्रों में काम करके राष्ट्र को नई दिशा दी है। उन्होंने कहा, “संघ का मंत्र हमेशा एक ही रहा है- राष्ट्र प्रथम।” प्रधानमंत्री ने लिखा कि संघ की स्थापना से ही उसका उद्देश्य राष्ट्रनिर्माण रहा है और इसके लिए उसने “व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण” का मार्ग चुना। उन्होंने दैनिक शाखा को एक अद्वितीय साधन बताया, जहां से हर स्वयंसेवक “मैं” से “हम” की यात्रा शुरू करता है और व्यक्तिगत रूपांतरण से समाज व राष्ट्र की सेवा करता है।

इतिहास की भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “संघ की स्थापना के समय से ही उसने राष्ट्र को अपनी प्राथमिकता माना। डॉ. हेडगेवार और कई स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हुए। डॉ. हेडगेवार कई बार जेल भी गए। विभाजन के समय और अन्य आपदाओं में भी संघ ने सेवा और राहत कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।” पीएम मोदी ने कहा कि पिछले सौ वर्षों में संघ ने समाज के हर वर्ग में आत्मविश्वास जगाया और दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों तक पहुंच बनाई। सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय और वनवासी कल्याण आश्रम जैसी संस्थाओं को उन्होंने आदिवासी समाज को सशक्त बनाने वाले स्तंभ बताया।

सामाजिक बुराइयों पर संघ की लड़ाई का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “जातिगत भेदभाव और छुआछूत जैसी समस्याओं के खिलाफ संघ हमेशा डटा रहा। गुरुजी ने ‘ना हिंदू पतितो भवेत’ का संदेश दिया। पूज्य बालासाहेब देवरस ने कहा था कि अगर छुआछूत गलत नहीं है तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है। बाद में राज्जू भैया और सुदर्शन जी ने भी यही संदेश आगे बढ़ाया। आज मोहन भागवत जी ने ‘एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान’ की बात कर समाज को एकजुट करने का आह्वान किया।”

वर्तमान चुनौतियों का उल्लेख करते हुए पीएम मोदी ने लिखा कि आज भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन विदेशी निर्भरता, एकता तोड़ने की साजिशें और घुसपैठ जैसी चुनौतियां सामने हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इनसे निपट रही है और संघ ने भी इनसे निपटने के लिए ठोस रोडमैप तैयार किया है। प्रधानमंत्री ने संघ के “पंच परिवर्तन” का भी उल्लेख किया-स्व-बोध (औपनिवेशिक मानसिकता छोड़कर स्वदेशी अपनाना), सामाजिक समरसता (हाशिये पर खड़े वर्गों के लिए न्याय और समानता), कुटुंब प्रबोधन (पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करना), नागरिक शिष्टाचार (नागरिक कर्तव्यों का पालन), और पर्यावरण संरक्षण (भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रकृति की रक्षा) शामिल है। उन्होंने कहा कि इन संकल्पों के मार्गदर्शन में संघ अपनी दूसरी शताब्दी की यात्रा शुरू कर रहा है और 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में उसका योगदान महत्वपूर्ण होगा।

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