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भैंसा गांव का किसान के भेष में गुप्त कोचिया फ़िर पकड़ा गया…उमाशंकर दिवाकर शब्दों से नहीं लड़ पाए तो रचते हैं साजिश….संगठन को बना बैठे हैं बकौती नहीं लेते सदस्यता…

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में पत्रकारों के साथ में हो रही भेदभाव एवं कपट पूर्ण व्यवहार के वजह से निष्पक्ष पत्रकारिता पर अवरोध उत्पन्न किया जा रहा है,जिले की जनता के बीच में वरिष्ठ कहे जाने वाले पत्रकार जों धान कोचियों कों देते थे संरक्षण जिनकी पुनः पोल खुल गई एक सो साठ कट्टी महामाया धान का परिवहन करते चारभाठा बाईपास में फिर पकड़ा गया वर्तमान में मंडी एक्ट के तहत हो रही कार्यवाही ऐसे हि एक मामले में धान का परिवहन करते पकड़े जाने व कार्यवाही के डर पर झूठ का पुनिदा रच कर बचा दो आज के बाद ऐसा गलती नही होगा कह कर हाथ पैर पड़ने वाले का काम निकल जाने के बाद बंदर जैसा हरकत करके अपनी नाच जग जाहिर कराने चाह रहे है।

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अधिकारियों कि रहमत पर नमक हरामी करने वाले सरीफ बन बैठे है और षडयंत्र पूर्वक साजिश रच कर अपनी गलतियों पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं क्योंकि उस मामले से बचने के लिए बड़े बड़े नेता और भ्र्स्ट,दलाल,बेईमान पत्रकारों का जब नही चला चलाकी जिससे चिड़ कर षडयंत्र का साजिश रच रहे है ऐसे गद्दारों के षडयंत्र से जीतेंगे या सीखेंगे लेकिन हार मानेगे नही, क्योंकि जिनका शरीर नहीं चल पाता और ना ही बुढ़ापे पर दिमाग ठीक से कार्य करता ऐसे भ्रष्ट दोगले घर बैठे वाहवाही लूटने वाले जिसकी बुद्धि सठिया गई हो ऐसे पत्रकार सिर्फ निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले को बदनाम कर झूठी वाहवाही और सानो शौकत प्राप्त करने में ही अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं यदि यही दिमाग को अच्छे और पत्रकार हित में करते तो हो सकता था कि बेमेतरा जिले की पत्रकारों की छवि कुछ अलग ही रहती,

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पत्रकारित की नाव पर बड़े शौक से डुबोये जा रहे हैं जो निष्पक्ष खबर प्रकाशित करते हैं उनको झूठे मामले में फंसाए जा रहे हैं यह देश के चौथे स्तंभ के सिपाही यू कब तक चंद नेता और अधिकारी के फेंकी हुई रोटियों पर दुम हिलाते रहेंगे तुम्हारी निकम्मे पन की वजह से महिलाएं की अशमद बिक रही है और शराब घर-घर बिक रहा है वही कुछ पत्रकार असल को नकल बनाकर पेश करने में लगे हुए है ऐसा छत्तीसगढ़ के साथ साथ बेमेतरा की पत्रकारिता जगत में चल रही है।

 

पता नहीं लोग इतनी चालाकियां क्यों करते हैं साथ में रहते भी हैं और जलते भी हैं रिश्ता भी रखते हैं और दुश्मनी भी निभाते हैं तारीफ भी करते हैं और पीठ पीछे बुराई भी करते हैं और अपने आप को अधिकारी कर्मचारी और 5 साल के नेताओं के सामने सच बोलने और लिखने में पेंट गीली हो जाती है वही जो निष्पक्ष और वास्तविक खबर प्रकाशित करते है तो उनकी पीठ पीछे गद्दारी और षड्यंत्र करके झूठी केस में फसाने की साजिश रचते हैं।

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पत्रकारिता जगत में जब आप किसी के अंदर अगर भेड़िया पन को देखना चाहते है तो अपने आप कभी अपना पहचान बेहतर बताते हुए पत्रकार होने का हक मांग करके देख लो आपके बिना विलंब किए ही षड्यंत्र करके इस दुनिया से ही उठा देंगे…ऐसे ही जब हमने लिखना क्या शुरू किया तो बेईमान दलाल और गोबर जीवी के शरीर में आग फूकना शुरू कर दिया

शतरंज में वजीर और जिंदगी में जमीर मर जाए तो समझ जाना कि खेल खत्म

जिस तरह मरी हुई मछली पानी कि धारा के साथ बहती है लेकिन जीवित मछली धारा की विपरीत बहती है अगर आप देश के चौथे स्तंभ अपने आप को मानते हो तो गलत कों गलत कहना सीखो और लिखों… मगर गोबर जीवियों को इनका क्या असर होगा इस बात का फर्क उनको क्या पड़ेगा जिनकी बुढ़ापे में बुद्धि थम सी गई है और बुद्धि चलाएं मान हो गई है उनको शब्दों का क्या फर्क पड़ेगा कुछ गद्दार पत्रकारों का दोगलापन भी देखिए संख्या गिनाना हो तो नाम जोड़ देते हैं और फायदा लेना हो तो नाम छोड़ देते हैं… पूरा मामला सम्मान का अधिकार और स्वाभिमान की लड़ाई का है जिसे कुछ लोग बर्दाश्त और पचा नही पा रहे हैं…

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मैंने उम्र का लिहाज करते हुए सबसे अदब से झुक कर सम्मान क्या देना शुरू किया कि लोग मुझे गुलाम समझने लगे… मैंने अपने पत्रकार साथियों का हर वह पीड़ा वेदना और अपमान को सहा है क्योंकि आज नहीं तो कल मुझे सम्मान और अदब से मेरे नाम का सम्मान देगे किंतु लोगों को हजम ही नहीं हो रहा था मेरा पत्रकारिता करना कुछ लोगो को आज भी अपने समकक्ष बैठे देखना रास नही आता है… क्योंकि कुछ लोगों को बैठे बिठाये ही हिस्सा और सम्मान मिलता था अब वो सम्मान जब मुझे मिलते देख रहे है तो बर्दाश्त नही कर पा रहे है और बौखला रहे है ..।

संभाल कर किया करो अधिकारी कर्मचारी व नेताओं से हमारी बुराई ऐ गब्दार पत्रकारों तुम जिन्हें जाकर मेरे बारे में करते हो बुराई वह सब हमें आकर सम्मान देकर बात बता जाते हैं… बगावत हमेशा ईमानदार और स्वाभिमान लोग ही करते हैं चलाक और दोगले पत्रकार तो चापलूसी और नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों के तलवे चाट कर ही हर जगह अपना काम निकाल लेते हैं।

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एक शायरी ऐसे लोगों पर फिट बैठता है..

लहजे में बदतमीजी और चेहरे पर नकाब लिए फिरते हैं, जिनके खुद के खाते खराब हैं वह मेरा हिसाब लिए फिरते हैं,

जरूरत पड़ने पर बहाना और बुरे वक्त में ताना हर कोई अपना ही कोई मार जाता है नहीं तो किसी की क्या औकात की पत्रकारों को कोई हाथ लगा दे या आँख उठा कर देख ले। क्योंकि चापलूसी और दोगलापन के वजह से पत्रकार ही पत्रकारता जगत की छवि को बदनाम करने के लिए षडयंत्र पूर्वक निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले लोगों की छवि खराब करने के नियत और उद्देश्य बनाकर उनको रास्ते से साफ करने के लिए हर तरीके से हथकंडे अपना कर फसाने का प्रयास करते हैं।

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ऐ पत्रकार साथियों एक होकर करो पत्रकार सुरक्षा के नियमों को करो सब मांग… नहीं होगी कोई पत्रकारों की हत्या और ना होगी सच्चा पत्रकार परेशान…पत्रकारिता के वरिष्ठ पदों पर बैठे हो तो भेदभाव कपट और गोबर जीवी जैसा काम करोगे तो कब तक टीकोगे उम्र का लिहाज है नहीं तो ऐसे भ्रष्ट दलाल और बेईमान षड्यंत्र करने वाले पत्रकारों के लिए हम डोमीसांप हैं। सबक जिंदगी ने कुछ सिखा दिया मुझे हर अपने लोगों ने रुला दिया मुझे मैं तो सबको गले लगा कर निष्कपट अपना समझकर लेकिन कुछ अपने… हमसे ही ज्ञान लेकर बेईमानों का साथ दिया कमजोर मुझे वह बनाना चाहते थे किंतु आज खुद लाचार और बेबस बन बैठे हैं। हां मैंने कर दिया कलम का सर कलम क्यों की कमबख्त डरने लगी थी नेताओं और अधिकारियों की हकीकत कारनामे को जमाने के सामने सच लिखने की। कुछ लोग अंदाजा लगाकर हमारी लेखनी और निडरता पर सवाल उठाया करते थे क्योंकि हमने उतना ही लिखना शुरू किए थे कि किसी को आभास ना हो कि हम भी उनसे बेहतर लिखते है।

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