SAVE HASDEV SARGUJA CG: अडानी के खनन पर राज्य सरकार को ग्रामीणों का सवाल,ग्रामसभा स्थगित करने कलेक्टर को पत्र
SAVE HASDEV SARGUJA CG: अडानी के खनन पर राज्य सरकार को ग्रामीणों का सवाल,ग्रामसभा स्थगित करने कलेक्टर को पत्र
SAVE HASDEV SARGUJA CG:सरगुजा में अड़ानी के पीकेबी कोल प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के लिए 19 जून को ग्रामसभा स्थगित करने ग्रामीणों ने कलेक्टर और एसडीएम को भेजा पत्र
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अड़ानी के उत्खनन के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ राज्य सरकार से घाटबर्रा के ग्रामीणों का सवाल भुमि अधिग्रहण की ही सहमति नहीं दी तो पुनर्वास के लिए ग्रामसभा कैसे?
राज्य सरकार सरगुजा के हसदेव अरण्य इलाक़े में पीकेबी कोल प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के लिए ग्राम घाटबर्रा में आयोजित ग्रामसभा को लेकर ग्रामीणों ने जबर्दस्त विरोध दर्ज कराया है। ग्रामीणों ने कलेक्टर सरगुजा और उदयपुर एसडीएम को पत्र भेजकर इस ग्रामसभा को तत्काल स्थगित करते हुए सवाल किया है कि, जब भूमि अधिग्रहण को ही सहमति नहीं दी गई तो पुनर्वास के लिए ग्रामसभा का आयोजन कैसे हो रहा है।
भूमि अधिग्रहण के लिए ही ग्रामसभा की सहमति नहीं तो एक कदम आगे कैसे बढ़ गए
मध्य भारत के सबसे समृद्ध वन क्षेत्र हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक हैं। यह कोल ब्लॉक राजस्थान विद्युत कंपनी को आबंटित है। यहाँ उत्खनन का ठेका अड़ानी कंपनी को मिला है। इस इलाक़े में जंगल को बचाने की लंबी लड़ाई जारी है। जंगल को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन के आलोक शुक्ला आरोप लगाते हैं कि समूचा तंत्र अड़ानी के आगे घुटनों के बल बैठ गया है। घाटबर्रा के मसले में तो यह विषय है कि, भूमि अधिग्रहण के लिए ही ग्रामसभा ने सहमति नहीं दी है लेकिन राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण के बाद की प्रक्रिया पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन के लिए ग्रामसभा का आयोजन कर रही है।”
सेकंड फेज़ 2028 में शुरू होना था
अड़ानी को परसा ईस्ट केले बासेन में क़रीब 1841 हैक्टेयर में उत्खनन करना है। इसके दो चरण थे। पहले चरण में क़रीब 900 हैक्टेयर में उत्खनन होता उसके बाद शेष हिस्से में। याने परसा ईस्ट केते बासेन माइनिंग दो फेज़ में होनी थी। काग़ज़ों में उल्लेखित है कि, फर्स्ट फेज़ के बाद सेकंड फेज़ की बारी आनी है, और यह सेकंड फेज़ की बारी सन 2028 में आनी थी। लेकिन समय से बहुत पहले ही यह बता दिया गया कि, फर्स्ट फेज़ का कोयला निकाला जा चुका है। कई मौकों पर समय से पूर्व इस कोयला भंडार के खत्म होने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। अब सेकंड फेज़ के लिए जिस जगह को उत्खनन के दायरे में लाना है उसमें सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाला गाँव घाटबर्रा है। इसी घाटबर्रा के ग्रामीणों ने जबर्दस्त विरोध भी किया है और लिखित आवेदन भी दिया है जिसमें सैकड़ों ग्रामीणों के दस्तखत हैं।
2022 में ग्रामसभा का मसला
वर्ष 2022 में जबकि राज्य में भूपेश सरकार थी। घाटबर्रा में भूमि अधिग्रहण के लिए आठ जून को ग्रामसभा आयोजन किया गया। ग्रामसभा में ग्रामीणों ने उत्खनन का विरोध किया और ग्रामसभा में सहमति नहीं बनी। प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि जैसे ही हितबद्ध राज्य सरकार को यह पता चला कि, ग्रामसभा ने सहमति नहीं दी, वह ग्रामसभा निरस्त कराए जाने के पत्र जिला प्रशासन ने जारी कर दिए। लेकिन अब जबकि भूमि अधिग्रहण को लेकर ही ग्रामसभा में विरोध दर्ज है और सहमति नहीं दी गई है। तब भी भूमि अधिग्रहण के बाद की प्रक्रिया जिसे पुनर्वास और पुनर्वव्यस्थापन कहा जाता है उसके लिए ग्रामसभा कराए जाने का आदेश जिला प्रशासन ने दे दिए हैं।
घाटबर्रा का मसला 2013 के नियमों के तहत
यह उल्लेखनीय है कि, घाटबर्रा का मसला भूमि अधिग्रहण क़ानून 2013 की धारा 41 (3) के तहत है। क़ानून की यह थारा स्पष्ट करती है कि, अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट 1996 प्रभावी है, याने ग्रामसभा की सहमती अनिवार्य है। यहाँ विरोध में खड़े ग्रामीणों का मसला ही यह है कि, जब भूमि अधिग्रहण के लिए ही ग्रामसभा ने सहमति नहीं दी तो उसके आगे की प्रक्रिया के लिए ग्रामसभा कैसे बुलाई जा रही है।
सरगुजा कलेक्टर से नहीं मिला है पक्ष
सरगुजा कलेक्टर भोस्कर विलास संदीपन से ग्रामीणों की माँग और आपत्ति को लेकर पक्ष देने का आग्रह उनके नंबर पर व्हाट्सएप और एसएमएस दोनों पर मैसेज भेज कर किया गया है, जिस पर उनका जवाब नहीं मिला है। यदि कोई जवाब आता है तो उसे यहाँ प्रकाशित कर दिया जाएगा।
सरगुजा में अड़ानी के पीकेबी कोल प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के लिए 19 जून को ग्रामसभा स्थगित करने ग्रामीणों ने कलेक्टर और एसडीएम को भेजा पत्र
अड़ानी के उत्खनन के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ राज्य सरकार से घाटबर्रा के ग्रामीणों का सवाल भुमि अधिग्रहण की ही सहमति नहीं दी तो पुनर्वास के लिए ग्रामसभा कैसे?
राज्य सरकार सरगुजा के हसदेव अरण्य इलाक़े में पीकेबी कोल प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के लिए ग्राम घाटबर्रा में आयोजित ग्रामसभा को लेकर ग्रामीणों ने जबर्दस्त विरोध दर्ज कराया है। ग्रामीणों ने कलेक्टर सरगुजा और उदयपुर एसडीएम को पत्र भेजकर इस ग्रामसभा को तत्काल स्थगित करते हुए सवाल किया है कि, जब भूमि अधिग्रहण को ही सहमति नहीं दी गई तो पुनर्वास के लिए ग्रामसभा का आयोजन कैसे हो रहा है।
भूमि अधिग्रहण के लिए ही ग्रामसभा की सहमति नहीं तो एक कदम आगे कैसे बढ़ गए
मध्य भारत के सबसे समृद्ध वन क्षेत्र हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक हैं। यह कोल ब्लॉक राजस्थान विद्युत कंपनी को आबंटित है। यहाँ उत्खनन का ठेका अड़ानी कंपनी को मिला है। इस इलाक़े में जंगल को बचाने की लंबी लड़ाई जारी है। जंगल को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन के आलोक शुक्ला आरोप लगाते हैं कि समूचा तंत्र अड़ानी के आगे घुटनों के बल बैठ गया है। घाटबर्रा के मसले में तो यह विषय है कि, भूमि अधिग्रहण के लिए ही ग्रामसभा ने सहमति नहीं दी है लेकिन राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण के बाद की प्रक्रिया पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन के लिए ग्रामसभा का आयोजन कर रही है।”
सेकंड फेज़ 2028 में शुरू होना था
अड़ानी को परसा ईस्ट केले बासेन में क़रीब 1841 हैक्टेयर में उत्खनन करना है। इसके दो चरण थे। पहले चरण में क़रीब 900 हैक्टेयर में उत्खनन होता उसके बाद शेष हिस्से में। याने परसा ईस्ट केते बासेन माइनिंग दो फेज़ में होनी थी। काग़ज़ों में उल्लेखित है कि, फर्स्ट फेज़ के बाद सेकंड फेज़ की बारी आनी है, और यह सेकंड फेज़ की बारी सन 2028 में आनी थी। लेकिन समय से बहुत पहले ही यह बता दिया गया कि, फर्स्ट फेज़ का कोयला निकाला जा चुका है। कई मौकों पर समय से पूर्व इस कोयला भंडार के खत्म होने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। अब सेकंड फेज़ के लिए जिस जगह को उत्खनन के दायरे में लाना है उसमें सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाला गाँव घाटबर्रा है। इसी घाटबर्रा के ग्रामीणों ने जबर्दस्त विरोध भी किया है और लिखित आवेदन भी दिया है जिसमें सैकड़ों ग्रामीणों के दस्तखत हैं।
वर्ष 2022 में जबकि राज्य में भूपेश सरकार थी। घाटबर्रा में भूमि अधिग्रहण के लिए आठ जून को ग्रामसभा आयोजन किया गया। ग्रामसभा में ग्रामीणों ने उत्खनन का विरोध किया और ग्रामसभा में सहमति नहीं बनी। प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि जैसे ही हितबद्ध राज्य सरकार को यह पता चला कि, ग्रामसभा ने सहमति नहीं दी, वह ग्रामसभा निरस्त कराए जाने के पत्र जिला प्रशासन ने जारी कर दिए। लेकिन अब जबकि भूमि अधिग्रहण को लेकर ही ग्रामसभा में विरोध दर्ज है और सहमति नहीं दी गई है। तब भी भूमि अधिग्रहण के बाद की प्रक्रिया जिसे पुनर्वास और पुनर्वव्यस्थापन कहा जाता है उसके लिए ग्रामसभा कराए जाने का आदेश जिला प्रशासन ने दे दिए हैं।
घाटबर्रा का मसला 2013 के नियमों के तहत
यह उल्लेखनीय है कि, घाटबर्रा का मसला भूमि अधिग्रहण क़ानून 2013 की धारा 41 (3) के तहत है। क़ानून की यह थारा स्पष्ट करती है कि, अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट 1996 प्रभावी है, याने ग्रामसभा की सहमती अनिवार्य है। यहाँ विरोध में खड़े ग्रामीणों का मसला ही यह है कि, जब भूमि अधिग्रहण के लिए ही ग्रामसभा ने सहमति नहीं दी तो उसके आगे की प्रक्रिया के लिए ग्रामसभा कैसे बुलाई जा रही है।